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कविता

हीनता-ग्रंथि

आंद्रेइ वोज्नेसेन्‍स्‍की


तौलिया लिए हाँफ रहा है बॉक्‍सर
यों, बचपन में वह डरपोक रहा,
बहुत रह लिया अब नहीं रहेगा
हीनता-ग्रंथि का वह शिकार।

घटिया लेखन का भूतपूर्व विजेता
धावा बोल रहा है गोस्लित् इज्दात पर,
बहुत रह लिया अब और नहीं रहेगा
हीनता-ग्रंथि का वह शिकार।

रूसी झीलों की नीलिमा
कराहती है दर्द में इस तरह
जैसे उसकी पुत्रवत जनता ने नहीं
बल्कि उसने किये हों सब अपराध।

जब नस्‍ल भी नहीं बचेगी बीहड़ वनों की
और नदियाँ भी सूख जायेंगी आखिरी बूँद तक
कौन होगा इसके लिए दोषी? पूश्किन?
हाँ, कवियों पर ही तो मढ़ दिये जाते रहे हैं सारे दोष।

कुदरत का नहीं कोई कसूर
कि नालायक निकला उसका बेटा।
कवि को ही घोषित किया जाये अपराधी
कि जगाया नहीं उसने लोगों के अंत:करण को।

जब काले सागर के बीच
बिछा दिया गया हो सड़कों का जाल,
इस काले दुख का भी
अपराधी होता है कवि ही।

उसने बुलाई नहीं कोई पंचायत
न ही छेड़ा कोई जिहाद,
बहुत रह लिया अब नहीं रहेगा
हीनता-ग्रंथि का वह शिकार।

 


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